5/17/2009

ऐसे चन्दन

हमने भी ग़म देखे हैं,
ऐसे मौसम देखे हैं ।

जख्मों को गहरा कर देते,
वो भी मरहम देखे हैं ।

बीच राह में साथ छोड़ दे,
ऐसे हमदम देखे हैं ।

सर्पों को घायल कर देते,
ऐसे चन्दन देखे हैं ।

अपने ही अपनों को काटे,
किस्से हरदम देखे हैं ।

लाचारों से दूर भागते,
जाते, राशन देखे हैं ।

पानी की इक बूँद नहीं है,
वो भी सावन देखे हैं ।

जहां पै ‘अंकुर’ एक नहीं,
ऐसे उपवन देखे हैं ।
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आशीष दशोत्तर ‘अंकुर’ की एक गजल

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3 comments:

  1. वाह क्या गजल कही आपने दिल खुश हो गया

    वीनस केसरी

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  2. बेहतरीन अभिव्यक्ति

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  3. शानदार रचना

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