5/02/2009

आजकल

बेवजह का जोर देखो आजकल,
शोर ही बस शोर देखो आजकल ।

रोशनी लाने की कोई सोचता नहीं,
फैला है घनघोर देखो आजकल ।

वायदों के पुल पै’ सरकारें टिकी है,
झूठ है चहुँ और देखो आजकल ।

अपना घर खुला रखें किसके यकीं से,
गुज़रते बस चोर देखो आजकल ।

है पतंग अपनी मग़र क्या कीजिए,
पड़ौसी के हाथ में डोर देखो आजकल ।
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आशीष दशोत्तर ‘अंकुर’ की एक गजल

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