4/30/2009

कितना गलत है

मैं सुबह से खोज रहा था उसे
हर जगह खोज आया था
जहाँ-जहाँ उसके मिलने की सम्भावना थी
लेकिन वो
नजर न आई
मैं और बेचैन हो उठा
उसे पाने के लिए
मेरा प्यार/और बढ़ता जा रहा था
गुस्सा भी बहुत आ रहा था
लेकिन मजबूर था
उसकी हर चीज
उसकी याद को बढ़ा रही थी
और न मिलने से खीज भी बढ़ रही थी
लेकिन वो है कि
लाख खोजने के बाद भी
नजर नहीं आ रही थी
मैं रह-रहकर
एक ही बात सोच रहा था
कितना गलत है
उसका यूँ अपनी जगह पर न होना ।
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संजय परसाई की एक कविता

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