4/28/2009

बातें उसे भाती नहीं

आँखों देखी ज़ुबाँ पर आती नहीं है,
ये फिज़ा तो हमको सुहाती नहीं है ।

दिल बहलाने को हैं तरीके बहुत,
टीस मग़र दिल से ही जाती नहीं है ।

जब कभी भी सच बताया है उसे,
हमारे बातें उसे भाती नहीं है ।

ज़िन्दगी के गीत गाए हैं यहाँ,
धड़कने फिर भी यहाँ गाती नहीं है ।

बदलती दुनिया का बदला रुप है,
दीप है तत्पर मग़र बाती नहीं है ।
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आशीष दशोत्तर ‘अंकुर’ की एक गजल



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