4/27/2009

जोकर

मैं चाहता हूँ
जोकर बन जाना
ताकि लोगो को हँसा सकूँ
उनके गम बाँट सकूँ
और दुःखों का साथी बन जाऊँ
कुछ समय के लिए

ऐसे दुःखों का साथी
जो दुःख नहीं, खुशी दे सकें
कुछ क्षणों के लिए
भीषण तपन में मावठे सी।

लेकिन
आसान नहीं है जोकर बनना
हजारों में एक ही बन पाता है जोकर
क्योंकि
अपना कुछ नहीं होता जोकर के पास

उसकी हँसी ठिठोली

रोना-कूदना-उछलना
सब दूसरों के लिए है

सोचता हूँ
क्या, दे पाऊँगा दूसरों को?
बाँट पाऊँगा उनके गम?

बढ़ा पाऊँगा
उनकी खुशी?

अन्तर्मन ने बार-बार कचोटा

शायद नहीं ....
शायद नहीं ....
शायद कभी नहीं ....।
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संजय परसाई की एक कविता



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1 comment:

  1. दूसरो को खुशी देना।बहुत मुश्किल काम है।अच्छी रचना प्रेषित की है।बधाई।

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