12/18/2008

घाव



।। घाव ।।


किसने कहा कि

विस्‍फो‍ट के लिए

चाहिए बारूद,

घर जलाने के लिए

चाहिए तीलियां ।

घर हो या सपने

पल में ध्‍वस्‍त होते हैं ।

क्षण में छिनता है आशियाना

बिना पेट्रोल धधकता है शहर ।

कविता जो मरहम है

आपके मुंह से निकलने

पर वही शब्‍द दे जाते हैं घाव ।

नेताजी, आग से उगलते

शब्‍‍दों से लाख दर्जा अच्‍‍छे

हैं आपके झूठे आश्वासन ।


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'सपनों के आसपास' शीर्षक कसव्‍‍य संग्रह से पंकज शुक्‍‍ला 'परिमल' की एक कविता


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कृपया मेरे ब्‍लाग 'एकोऽहम्' http://akoham.blogspot.com पर भी एक नजर डालें ।

2 comments:

  1. अच्छी रचना प्रेषित की ।

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  2. बिलकुल सच लिख दिया आप ने हम सब के दिल का दर्द इस कविता के रुप मै.
    धन्यवाद

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