12/03/2008

वारदातें



।। वारदातें ।।



शहर जल रहा है


ठीक उस सिगरेट की तरह


जो फँसी दो उँगलियों के बीच


लाशें गिर रही हैं,


जैसे गुल खिर रहा है ।


धुएँ की तरह फैल रही हैं वारदातें ।


शहर जल रहा है


दो उँगलियों में फँसी


सिगरेट की तरह ।


क्या यह आग जलाएगी कभी


उँगलियों को


या समय के होंठ पर


छोड़ जाएगी


एक स्याह निशान


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‘सपनों के आसपास’ शीर्षक काव्य संग्रह से पंकज शुक्ला ‘परिमल’ की एक कविता


मैं पंकज के प्रति मोहग्रस्त हूँ, निरपेक्ष बिलकुल नहीं । आपसे करबध्द निवेदन है कि कृपया पंकज की कविताओं पर अपनी टिप्पणी अवश्य दें ।


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1 comment:

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