11/21/2008

जरूरी है नीलकण्‍ठ बने रहना


।। जल ।।

यो वः शिवतमो रसस्तस्य भाजयतेह नः । उशतीरिव भातरः ।
(गंगा जल में भगवान शिव की मोक्षदायी कृपाएं बह रही हैं)

बेशक शिव की मोक्षदायिनी कृपाएं
बह रही हैं कल-कल धाराओं में ।
तुम्हीं से है, अंकुरण, जीवन, पतझर ।
तुम्हीं तो हो सृष्‍टा, सहगामी, संहारक ।
सृष्टि के आरम्भ में
तुम्हीं थे चहुंओर
जब नहीं रहेगा सबकुछ
तुम ही रहोगे हर ओर ।
दहाड़ मारता, पछाड़ खाता
विद्रोह जब होगा शान्त
देखना, उस दिन कोई नहीं होगा...........
कोई नहीं होगा जो
तुम्हारा ही चुल्लू भर अंश
तुम्हें सौंप, प्रस्तुत करे अपनी आस्था ।
आस्था बनी रहे इसलिए
जरूरी है नीलकण्ठ बने रहना ।
वरना, तुम ही रहोगे
कोई और न होगा
न तुम्हें सहलाने को...........
न तुमसे बतियाने को...........।
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‘सपनों के आसपास’ शीर्षक काव्य संग्रह से पंकज शुक्ला ‘परिमल’ की एक कविता
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