11/20/2008

बाजार इजाजत नहीं देता









।। सात दिन ।।




बाजार के जीवन



मेंटारगेट की तरह आता है एक दिन ।



ताजगी के साथ शुरु होता



नए सप्ताह का सफर ।
यह सोमवार है ।



पहली बैठक में



खुलती है फाइल



बँटते हैं काम ।



‘वेल डन’ कहते हुए बास



जोड़ता है - ‘पिछले हफ्ते ठीक



काम किया । पुरुस्कार में इस



बार तुम्हारा टारगेट दोगुना ।’



‘यस सर’ कह कर वह



मुस्कुराता है ।
दिल घबरा रहा है



लेकिन यह बाजार इजाजत नहीं देता



कि वह दिल की सुने ।



उसे तो वही करना है जो



दिमाग कहता है और दिमाग उसे



रेस का घोड़ा बना रहा है ।
आज मंगलवार है ।



सही मायने में तो यही



इम्तिहान है ।



टारगेट पाने को उसे



कैश करना है रिश्‍ते ।



वह पूरा ध्यान रखता है



घर की चिन्ता घर में ही रहे



बाहर उसे ‘रिजल्ट’ लाना है ।



यही बाजार का फलसफा भी है ।
आज बुधवार है ।



अब उस पर चिन्ता हावी होने लगी है ।



एक ही लक्ष्य है और एक ही तीर



वह दौड़ रहा हैसबको पीछे छोड़ने के लिए



तेज और तेज ।
आज गुरुवार है ।



एक और मीटिंग



आज बास की त्यौरियाँ चढ़ी हुई हैं ।



फिर भी आवाज नरम है,



‘‘और मेहनत, और दौड़ो ।’’



दिन और रात में कोई भेद नहीं है ।



बुरे सपनों से नहीं



टारगेट से उसकी नींद उड़ रही है ।
वह आधी मंजिल तक भी नहीं पहुँचा और



शुक्रवार आ धमका ।



अब बास भी सब्र खो चुका है



बात में अब तारीफ नहीं



हौंसला और साहस भी नहीं



केवल तनाव है ।



‘यस सर’ कह कर उसे



आज भी मुस्कुराना है ।



दिल में घबराहट है तो क्या



यह बाजार इजाजत नहीं



देता कि वह दिल की सुने ।
आज शनिवार है ।



अब उसे कुछ भी नहीं याद ।



न बेटी के स्कूल का हाफ-डे



न बाबूजी की दवाई,



केवल बास याद है और



उनकी आवाज



''मुझे रिजल्ट चाहिए ।



और.......और......''
आज इतवार है ।



सप्ताह का आखिरी दिन ।



यही आखिरी उम्मीद भी



सुबह से निकला वह



देर रात घर पहुँचा है ।



छह दिन से रेस में दौड़



रहा घोड़ा निढाल पड़ा



है अपनी बीबी के बाजू में ।



हफ्ते भर की थकान



को बिसरा कर



सोमवार आता है ।



पहली बैठक में बास



कहता है ‘वेल डन’



तारीफ के पुल बाँध वह



इस हफ्ते का टारगेट



बढ़ा देता है ।



वह मुस्कुरा कर कहता है



‘यस सर’ ।



दिल में उसके घबराहट है लेकिन



यह बाजार उसे इजाजत



नहीं देता कि वह दिल की सुने ।
बाजार डरता है कहीं



वह एक दिन रहे बीबी के साथ



सुने बेटी की किलकारियाँ



तो भुला न दे अपना टारगेट ।
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‘सपनों के आसपास’ शीर्षक काव्य संग्रह से पंकज शुक्ला ‘परिमल’ की एक कविता



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