11/19/2008

खूब बरसी है मेह



।। सन्देश ।।



भेजे थे ख्वाब तुम


तकमिले या नहीं ?


देखो, एक तो सिरहाने होगा


बिस्तर की सिलवटों में


पड़े होंगे दो-चार ।


वक्त मिले तो देखना


एक ख्वाब जेहन में


छुपा होगा कहीं ।


यादों के कुछ खत भेजे


रख कर भूल गए क्या ?


उलझी जिन्दगी में गुत्था


होंगे कुछ तो


या मिल ही जाएँ


किताबों में सूखे फूलों की तरह


सुना है, खूब बरसी है मेह


तुम्हारे आँगन में,


‘देना याद हमारी’ कह भेजा था


कजरारे मेघों को,


तुम तक पहुँचे क्या ?


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‘सपनों के आसपास’ शीर्षक काव्य संग्रह से पंकज शुक्ला ‘परिमल’ की एक कविता


मैं पंकज के प्रति मोहग्रस्त हूँ, निरपेक्ष बिलकुल नहीं । आपसे करबध्द निवेदन है कि कृपया पंकज की कविताओं पर अपनी टिप्पणी अवश्‍य दें ।


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3 comments:

  1. "मेघ संदेश" के सदृश. आभार.
    http://mallar.wordpress.com

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  2. ब्लॉग पर आने का आपका धन्यवाद

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  3. बहुत सुंदर रचना ! शुभकामनाएं !

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